मोटापे से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम क्या होते हैं?

मोटापा या ओबेसिटी एक चिकित्सीय स्थिति होती है जिसमें शरीर में अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। 30 या उससे अधिक के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले व्यक्ति को मोटापे से पीड़ित माना जाता है।मोटापे या अधिक वजन वाले लोगों में हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी गंभीर स्थितियों के विकास का ख़तरा अधिक होता है।
हालांकि, हर व्यक्ति जो मोटापे से ग्रसित है वह ज़रूरी नहीं कि इन समस्याओं का सामना करें। परिवार के स्वास्थ्य संबंधी इतिहास और शरीर के विभिन्न हिस्सों में वजन का इकट्ठा होना भी ऐसे कारक हैं जो किसी के गंभीर स्थितियों के होने के ख़तरे को बढ़ाते हैं।
मोटापे के कारण व्यक्ति को निम्नलिखित स्वास्थ्य संबंधी जोखिम हो सकते हैं:
उच्च रक्तचाप:
अधिक वजन या मोटापा कई तरह से उच्च रक्तचाप की स्थिति उत्पन्न होने में योगदान कर सकता है। जब शरीर के वजन में वृद्धि होती है, तो यह शरीर के चारों ओर रक्त को स्थानांतरित करने वाले परिसंचरण तंत्र पर अधिक दबाव डालता है। मोटापे को कोलेस्ट्रॉल स्तर में वृद्धि के लिए भी ज़िम्मेदार माना जाता है, विशेष रूप से जब शरीर के किसी एक क्षेत्र में वजन जमा होता है। उदाहरण के लिए, पेट क्षेत्र में वजन वृद्धि होने पर यह उस क्षेत्र में मौजूद धमनियों की दीवारों में प्लाक जमा होने के कारण उन्हें मोटा और कठोर बना सकता है। इससे परिणामस्वरूप रक्तचाप बढ़ जाता है।
मधुमेह:
मोटे या ओबीस होने की वजह से व्यक्तियों में टाइप 2 मधुमेह होने का जोखिम बढ़ जाता है। आमतौर पर इस प्रकार का मधुमेह वयस्कों में सामान्य होता है, लेकिन अब यह बच्चों में भी मोटापा के बढ़ने के कारण दिखायी दे रहा है। मोटापा होने से व्यक्ति में इंसुलिन प्रतिरोधकता (resistance) दिखायी देती है। इन्सुलिन रक्त शर्करा के स्तर के नियमन के लिए आवश्यक हॉर्मोन होता है। लेकिन जब शरीर इंसुलिन के प्रतिरोधी बन जाता है, तो रक्त में शर्करा का कम या कोई भी अवशोषण नहीं होता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा स्तरों में वृद्धि हो जाती है। कई बार मोटापा इंसुलिन संवेदनशीलता को भी कम कर सकता है, जिससे प्रीडायबीटीज़ स्थिति उत्पन्न होती है, जो आखिरकार टाइप 2 मधुमेह में बदल जाती है।
हृदय-संबंधी रोग:
मोटापा ग्रसित लोगों में हृदय रोग के विकास की संभावना उन लोगों से 10 गुना अधिक होती है जो मोटे नहीं हैं। ऐसे लोगों में धमनियों में चर्बी का इकट्ठा होना और प्लाक जमा होने के कारण कुछ स्थितियों जैसे एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों का सख्त होना) और कोरोनरी धमनी रोग होने की संभावना अधिक हो जाती है। इससे धमनियाँ संकरी हो जाती हैं और व्यक्ति के हृदय में रक्त प्रवाह कम हो जाता है जिससे सीने में दर्द (एंजाइना) या हृदयघात (हार्ट अटैक) हो सकता है। कभी-कभी, संकुचित हुई धमनियों में रक्त का थक्का भी बन सकता है, जिससे मस्तिष्क स्ट्रोक भी हो सकता है।
जोड़ों में समस्याएँ:
शरीर के वजन में थोड़ा सा परिवर्तन भी जोड़ों और हड्डियों के स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है। अधिक वजन होना दो प्रमुख तरीकों से जोड़ों की समस्याओं का कारण बन सकता है। सबसे पहले, वजन के बढ़ने से वजन को उठाने या सहन करने वाले जोड़ों जैसे घुटनों पर अतिरिक्त तनाव पड़ सकता है, जिससे जोड़ों में अधिक टूट-फूट हो सकती है। दूसरा, मोटापा से जुड़े इंफ्लेमेटरी कारक भी जोड़ों में समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे ऑस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। थोड़ा वजन कम करने से ही आपकी गतिशीलता और जोड़ों के स्वास्थ्य में काफ़ी सुधार आ सकता है।
स्लीप एपनिया:
स्लीप एपनिया एक सामान्य लेकिन गंभीर नींद की समस्या है जिसमें लगभग 10 सेकंड या उससे अधिक समय तक नींद में बार-बार रुकावट होती है। इससे रक्त में ऑक्सीजन की कमी होती है और व्यक्ति समय-समय पर जाग भी सकता है। स्लीप एपनिया होने का सबसे आम कारण मोटापा होता है। अधिक वजन होने से मुँह और गले में मौजूद सॉफ्ट टिश्यू का विकास हो जाता है। जिसके कारण जब मरीज सोता है, तो तो गले और जीभ की मांसपेशियाँ अधिक शिथिल होती हैं और अतिरिक्त सॉफ्ट टिश्यू वायुमार्ग को अवरुद्ध कर सकते हैं, जिससे स्लीप एपनिया का एक एपिसोड हो सकता है। जिन लोगों में गर्दन और पेट के क्षेत्र में चर्बी ज़्यादा इकट्ठा हो गई हैं, उनमें स्लीप एपनिया की समस्या होने की संभावना अधिक होती है।
मानसिक प्रभाव:
मोटापा, स्वास्थ्य-संबंधी समस्याओं के अलावा, मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल सकता है। आधुनिक संस्कृति में, जहां पतलेपन और स्लिम होने को आदर्श शरीर प्रकार के रूप में मान्यता दी जाती है, वहाँ मोटे व्यक्ति अक्सर हीनता की भावना का सामना करते हैं। अधिक वजन की वजह से होने वाले मानसिक मुद्दों में कम आत्मसम्मान, चिंता, डिप्रेशन जैसी समस्याएँ शामिल हो सकती हैं। मोटापा खाने की विकारों जैसे बिंज ईटिंग, बुलिमिया और अनोरेक्सिया के लिए भी एक ट्रिगर कारक होता है।