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बच्चों में ल्यूकेमिया के 7 लक्षण

भारत में, 5 से 14 वर्ष के बीच के बच्चों में मृत्यु का नौवां आम कारण कैंसर है, और सालाना लगभग 45,000 बच्चों में कैंसर का पता चलता है। बचपन में होने वाले सभी कैंसर में से, बच्चों में ल्यूकेमिया या रक्त कैंसर सबसे आम है। ल्यूकेमिया में सबसे अच्छी बात यह है कि अगर इसका पता सही समय पर चल जाए तो इसका इलाज संभव है। इसीलिए ल्यूकेमिया के लक्षणों के बारे में अभिभावक और यहां तक ​​कि स्कूल के शिक्षकों को भी पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। अगर बच्चों में ये लक्षण लगातार उपस्थित रहते हैं तो तुरंत आवश्यक परीक्षण करवाने चाहिए।

 

ल्यूकेमिया क्या होता है?

 

हमारे रक्त में तीन मुख्य प्रकार कि रक्त कोशिकाएँ होती हैं, जिनमें से लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) ऑक्सीजन ले जाती हैं, श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) शरीर में उपस्थित संक्रमण से लड़ती हैं और प्लेटलेट्स चोट लगने पर रुधिर का थक्का जमाने में मदद करती हैं। आमतौर पर एक स्वस्थ शरीर में, प्रतिदिन नई रक्त कोशिकाएँ पैदा होती हैं, जो कुछ ही हफ्तों में मर जाती हैं, जिनका स्थान नई कोशिकाएँ ले लेती हैं। ल्यूकेमिया की स्थिति में, शरीर नए डब्ल्यूबीसी ज़्यादा बनाने लग जाता है, जिसके कारण अन्य दो कोशिकाएँ और महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज पर असर पड़ता है। अगर ये असामान्य डब्ल्यूबीसी कोशिकाएँ तेज़ी से खराब होती हैं तो इसे एक्यूट ल्यूकेमिया कहते हैं। वही दूसरी और यदि ये कोशिकाएँ धीरे-धीरे बिगड़ती हैं, तो इसे क्रोनिक ल्यूकेमिया कहते हैं।

 

क्या कुछ बच्चे ल्यूकेमिया होने के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं?

 

कुछ विशेष जोखिम कारकों की उपस्थिति ल्यूकेमिया से जुड़ी हो सकती हैं। और यदि ये जोखिम कारक बच्चों पर लागू होते हैं, ख़ास करके लड़कों पर, तो बच्चों का नियमित रूप से रक्त परीक्षण किया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ, अगर वे नीचे बताए गए किसी भी लक्षण को प्रदर्शित करते हैं, तो आपको एक ऑन्कोलॉजिस्ट से तुरंत परामर्श करना चाहिए। 

 

कुछ पर्यावरणीय कारक जैसे उच्च स्तर के विकिरण, कीमोथेरेपी, या बेंजीन जैसे रसायनों के संपर्क से ल्यूकेमिया होने का जोखिम बढ़ता है। अगर आपके किसी भाई या बहन, विशेष रूप से आइडेंटिकल जुड़वाँ में ल्यूकेमिया है तो आपमें भी इसके होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

 

कुछ मामलों में भी बच्चे ल्यूकेमिया का शिकार बन सकते हैं, जैसे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण ल्यूकेमिया ट्रिगर हो सकता है, या यह एक अनुवांशिकी बीमारी जैसे कि

 

एटैक्सिया-टेलैंगिएक्टेसिया के साथ में हो सकता है, या इम्यून सप्रेशन दवा (अधिकतर अंग प्रत्यारोपण के समय दी जाती है) के कारण हो सकता है, या किसी वंशानुगत विकार जैसे डाउन सिंड्रोम के कारण हो सकता है। 

 

 

ल्यूकेमिया से संबंधित किन लक्षणों पर नज़र रखनी चाहिए?

 

अगर आप निम्न में से कोई भी लक्षण अपने बच्चे में महसूस करते हैं तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें:

 

  • एनीमिया: - ल्यूकेमिया की वजह से एनीमिया या लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो सकती है। जब डब्ल्यूबीसी रक्तप्रवाह में बहुत ज़्यादा हो जाती हैं, तो लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। एनीमिया की स्थिति में बच्चे को दैनिक गतिविधियाँ करने में कमजोरी, थकान, चक्कर आना, त्वचा का पीला पड़ना, सिरदर्द और कभी-कभी तेज सांस आना महसूस हो सकता है। गंभीर परिस्थिति में, मस्तिष्क में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुँचने के कारण बच्चे की भाषा अस्पष्ट हो सकती है। 

 

  • बार-बार संक्रमण होना: - आमतौर पर वयस्कों की तुलना में बच्चे अधिक बार बीमार पड़ते हैं क्योंकि उनके शरीर में अभी प्रतिरक्षा प्रणाली का पूर्ण विकास नहीं हुआ होता है। फिर भी कुछ मामलों में बार-बार बीमार पड़ना और संक्रमण होना ल्यूकेमिया का एक संकेत हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रुधिर में उपस्थित डब्ल्यूबीसी ठीक से काम नहीं कर रहे होते हैं। हालांकि, किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।

 

  • चोट लगने पर नील पड़ना या रक्तस्राव में वृद्धि: - ल्यूकेमिया वाले बच्चों में नील जल्दी पड़ता है और छोटे घावों से भी खून अधिक बहता है। यदि आपको आपके बच्चे में आसानी से नील पढ़ना, बार-बार नकसीर आना, मसूड़ों से खून बहना या चोट लगने पर अत्यधिक रक्तस्राव दिखाई देता है, तो तुरंत डॉक्टर से जाँच कराएँ। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके रक्त में उपस्थित प्लेटलेट्स, जो रक्त का थक्का बनाने में मदद करते हैं, वो सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं क्योंकि ल्यूकेमिया उनकी संख्या को कम कर देता है।

 

  • हड्डियों और जोड़ों में दर्द होना: - अतिरिक्त डब्ल्यूबीसी हड्डियों के आसपास या जोड़ों के अंदर जमा हो जाते हैं, जिससे इनमें दर्द होता है। आमतौर पर ल्यूकेमिया से ग्रसित बच्चे पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत करते हैं या अत्यधिक जोड़ों और पैर के दर्द के कारण लंगड़ा कर चलना शुरू कर सकते हैं।

 

  • लिम्फ नोड्स में सूजन: - शरीर में उपस्थित लिम्फ नोड्स रक्तप्रवाह में विदेशी कणों, रोगजनकों और कैंसर कोशिकाओं को रक्त से अलग करते हैं। लेकिन जब शरीर ल्यूकेमिया से प्रभावित होता है, तब लिम्फ नोड्स को अत्यधिक कार्य करना पड़ता हैं, जिसके फलस्वरूप बगल, कमर, गर्दन, और पेट में सूजन जाती है। इस प्रकार की सूजन में कभी कभी दर्द भी नहीं होता है। 

 

  • श्वास संबंधित दिक़्क़तें: - ल्यूकेमिया में थाइमस (फेफड़ों के बीच स्थित एक छोटी ग्रंथि) के इर्द-गिर्द कोशिकाएँ जमा हो सकती है, जिससे बच्चों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा, बच्चों में सांस लेने में समस्या तब भी पैदा हो सकती है जब छाती में सूजे हुए लिम्फ नोड्स साँस की नलिका (windpipe) पर दवाब डालते हैं। इसके फलस्वरूप खांसी या व्हीज़िंग हो सकती है। अगर आपका बच्चा सही से सांस नहीं ले पा रहा है तो तुरंत चिकित्सीय सहायता प्राप्त करें।

 

  • भूख कम लगना और पेट में सूजन आना: - ल्यूकेमिया की कोशिकाएँ लीवर, किडनी और स्प्लीन में जमा हो सकते हैं, जिससे वे आकर में बड़े हो जाते हैं। इससे पेट में सूजन या परिपूर्णता जैसा लग सकता है, जो भूख न लगना और बाद में वजन घटने का कारण बन सकता है। 

 

जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, ल्यूकेमिया के लक्षण और अधिक गंभीर होते जाते हैं, बच्चों में दौरे, उल्टी, धुंधली दृष्टि और सिरदर्द जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं। 

 

ऊपर बताये हुए लक्षण ल्यूकेमिया के अलावा अन्य बीमारियों के कारण भी हो सकते हैं, इसीलिए अगर आपको आपके बच्चे में उपरोक्त लक्षण दिख रहे हैं तो जितनी जल्दी हो सके अपने डॉक्टर से परामर्श करें।  यदि आप अपने बच्चे में इन लक्षणों को देखते हैं तो स्वयं किसी निष्कर्ष पर ना पहुँचे, चिकित्सीय परीक्षणों का परिणाम आने का इंतज़ार करें।

 

This blog is a Hindi version of an English-written Blog  - 7 Symptoms of Leukemia in Children

 

Medanta Medical Team
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