फेफड़ों के कैंसर के दो मुख्य कारण

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फेफड़ों का कैंसर आज हमारे समाज में तेजी से बढ़ती हुई एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। इस बीमारी के कारणों को समझना न केवल जागरूकता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे बचाव के लिए भी आवश्यक है।
फेफड़ों के कैंसर के दो प्रमुख कारण
फेफड़ों के कैंसर के पीछे दो मुख्य कारण हैं जिन्हें विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए:
1. धूम्रपान
धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा और सबसे ज्ञात कारण है। सिगरेट, बीड़ी, हुक्का या किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन फेफड़ों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है। धूम्रपान में मौजूद हानिकारक रसायन सीधे फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
2. प्रदूषित हवा में सांस लेना
दूसरा प्रमुख कारण है प्रदूषित या पोल्यूटेड हवा में सांस लेना। आधुनिक औद्योगिकीकरण, वाहनों का धुआं, फैक्ट्रियों से निकलने वाले रसायन और अन्य प्रदूषक हवा में मिलकर हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
डॉ. अरविंद कुमार के अनुसार, इतिहास पर नज़र डालें तो औद्योगिकीकरण (इंडस्ट्रियलाइजेशन) से पहले फेफड़ों का कैंसर लगभग अनुपस्थित था। फेफड़ों के कैंसर की शुरुआत औद्योगिकीकरण और धूम्रपान के प्रचलन के साथ हुई, और जैसे-जैसे ये दोनों कारक बढ़े, वैसे-वैसे फेफड़ों के कैंसर की दर भी बढ़ती गई।
वर्तमान स्थिति
बीस साल पहले, जब फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी की शुरुआत हुई थी, अधिकांश रोगी धूम्रपान करने वाले थे। लेकिन आज की स्थिति यह है कि:
50% रोगी धूम्रपान करने वाले हैं
शेष 50% धूम्रपान न करने वाले हैं, लेकिन वे:
या तो प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं
या पैसिव स्मोकर हैं (यानी परिवार में कोई धूम्रपान करता है और वे उसका धुआं अनजाने में अंदर लेते हैं)
भविष्य का अनुमान
डॉ. कुमार के अनुसार, आने वाले 5 से 10 वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि होने का अनुमान है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण होंगे:
धूम्रपान की निरंतरता
बढ़ता वायु प्रदूषण
ये दोनों कारक न केवल वर्तमान में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आने वाले वर्षों में भी प्रमुख कारण बने रहेंगे।
निष्कर्ष
फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए दो प्रमुख उपाय हैं:
धूम्रपान से बचना और अगर करते हैं तो इसे छोड़ना
प्रदूषित वातावरण से जहां तक संभव हो, बचाव करना
अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए इन दोनों कारकों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है?
हां, बिल्कुल। वर्तमान में लगभग 50% फेफड़ों के कैंसर के रोगी ऐसे हैं जो धूम्रपान नहीं करते, लेकिन वे प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं या पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं।
पैसिव स्मोकिंग क्या है और यह कितनी खतरनाक है?
पैसिव स्मोकिंग तब होती है जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के आसपास हैं जो धूम्रपान कर रहा है, और आप उसके धुएं को अनजाने में अंदर ले लेते हैं। यह भी फेफड़ों के कैंसर का एक प्रमुख कारण है और इससे होने वाला नुकसान सीधे धूम्रपान के समान ही गंभीर हो सकता है।
क्या फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं?
हां, फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और अनुमान है कि आने वाले 5-10 वर्षों में इनमें और भी वृद्धि होगी, मुख्य रूप से धूम्रपान और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण।
क्या वायु प्रदूषण वास्तव में फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है?
हां, वायु प्रदूषण में मौजूद हानिकारक कण और रसायन फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। औद्योगिकीकरण के बाद से लंग कैंसर के मामलों में वृद्धि इस बात का प्रमाण है।
क्या धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम हो जाता है?
हां, धूम्रपान छोड़ने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा समय के साथ कम होता जाता है। जितनी जल्दी आप धूम्रपान छोड़ेंगे, आपके फेफड़े उतनी ही जल्दी स्वयं को ठीक करना शुरू कर देंगे।
क्या घर के अंदर का प्रदूषण भी फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है?
हां, घर के अंदर का प्रदूषण, जैसे रसोई के धुएं, मोमबत्तियों या अगरबत्ती का धुआं, और विभिन्न रसायनों से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ भी लंग कैंसर का कारण बन सकते हैं।
क्या मास्क पहनने से फेफड़ों के कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है?
उचित मास्क पहनना प्रदूषित हवा में मौजूद हानिकारक कणों को फिल्टर करने में मदद कर सकता है, जिससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा कुछ हद तक कम हो सकता है। हालांकि, यह केवल एक उपाय है और इसे अन्य सावधानियों के साथ अपनाना चाहिए।
फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय हैं - धूम्रपान न करना या इसे छोड़ना, पैसिव स्मोकिंग से बचना, प्रदूषित वातावरण में कम से कम समय बिताना, उचित मास्क का उपयोग करना, और नियमित स्वास्थ्य जांच कराना, खासकर यदि आप उच्च जोखिम वाले समूह में आते हैं।