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फेफड़े प्रत्यारोपण प्रक्रिया: पूरी प्रक्रिया के लिए एक निर्णायक गाइड

फेफड़े का प्रत्यारोपण एक शल्य चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के एक या दोनों फेफड़ों को जो अस्वस्थ या क्षतिग्रस्त हो चुके हों, को बदल दिया जाता है। यह सर्जरी उन मरीजों को सुझाई जाती है जिन्होंने फेफड़े की कोई स्थिति या चोट के कारण फेफड़ों की सही कार्यप्रणाली बाधित हो गई है और जो दवाइयों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं कर रही है। आम तौर पर, फेफड़े का दान किसी मृत व्यक्ति से आता है।

फेफड़े प्रत्यारोपण के प्रकार

फेफड़े प्रत्यारोपण तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

एकल फेफड़ा प्रत्यारोपण: इस स्थिति में, केवल एक फेफड़ा जो क्षतिग्रस्त है, को सर्जरी द्वारा मरीज के शरीर से निकाल दिया जाता है और दान किए गए फेफड़े से बदल दिया जाता है।

डबल फेफड़ा प्रत्यारोपण: डबल फेफड़ा प्रत्यारोपण में उस मरीज के शरीर के दोनों फेफड़ों को बदला जाता है जिनके दोनों फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं।

हार्ट-लंग प्रत्यारोपण: ऐसे मामले में, मरीज के दिल और दोनों फेफड़ों को दान किए गए फेफड़ों और दिल के एक जोड़े से बदला जाता है।

 

फेफड़े प्रत्यारोपण कब किया जाता है?

क्षतिग्रस्त या अस्वस्थ फेफड़े व्यक्ति के शरीर को जरूरी मात्रा में ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं कर पाते हैं जो उनके शरीर के लिए जीवित रहने के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, ऐसे अन्य कारण भी हो सकते हैं जो फेफड़ों को सही ढंग से काम करने से रोक सकते हैं, जिसके लिए फेफड़ा प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। यहां कुछ सामान्य कारण बताए हैं जिनमें फेफड़ा प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है:

• सिस्टिक फाइब्रोसिस

• क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीस

• फेफड़ों में उच्च रक्तचाप (लंग्स में हाई बीपी)

• पल्मोनरी फाइब्रोसिस या फेफड़ों में स्कारिंग

• हृदय दोष या बीमारियां जो फेफड़ों को भी प्रभावित करती हैं

• अन्य रोग जैसे कि हिस्टियोसाइटोसिस, सारकॉइडोसिस, लिम्फएंजियोलेइओमायोमाटोसिस

• आनुवंशिक स्थितियां

 

फेफड़ों का प्रत्यारोपण कैसे किया जाता है?

फेफड़े का प्रत्यारोपण कराने के लिए, मरीज पहले फेफड़े के प्रत्यारोपण के लिए सर्वश्रेष्ठ अस्पताल में पहुंचता है और सर्जरी के लिए सलाह लेता है। फेफड़ा दाता मिलने के बाद, दाता और प्राप्तकर्ता दोनों ही सर्जरी के लिए अस्पताल भर्ती होते हैं। शल्य प्रक्रिया के दौरान, एक अंतःशिरा (IV) लाइन मरीज के हाथों या बाहों में डाली जाती है जो फेफड़े का प्रत्यारोपण कराता है। इस IV लाइन का उपयोग एनेस्थेसिया देने के लिए किया जाता है ताकि व्यक्ति शल्य प्रक्रिया के दौरान किसी भी प्रकार के दर्द का अनुभव न करे।

इसके साथ-साथ, डॉक्टर द्वारा हृदय गति और रक्तचाप की निगरानी की जाती है, और एक बार सब कुछ सामान्य होने पर, प्रक्रिया शुरू होती है।

एक बार जब एनेस्थेसिया मरीज के शरीर पर काम शुरू कर देता है, तो डॉक्टर मरीज के शरीर से एक मैकेनिकल वेंटिलेटर को जोड़ता है ताकि सांस लेने में मदद मिल सके। मरीज के शरीर में एक मूत्र कैथेटर भी डाला जाता है ताकि प्रक्रिया के दौरान निकालने वाले मूत्र की मात्रा को इकट्ठा किया जा सके। ऐसी प्रक्रिया के लिए एक ECMO की भी आवश्यकता हो सकती है, जो एक मिनी हार्ट-लंग मशीन है जिसका उपयोग हृदय और फेफड़ों के लिए रक्त के प्रवाह को बायपास करने के लिए किया जाता है। यह मशीन मरीज के शरीर से रक्त को पंप करती है और कार्बन डाइऑक्साइड को हटाकर, ऑक्सीजन के साथ बदल देती है जो स्वस्थ ऊतकों को बनाए रखने में मदद करती है।

इसके बाद, एकल फेफड़ा प्रत्यारोपण के मामले में मरीज की छाती के किनारे पर तेज, स्टेराइल चाकू का उपयोग कर एक चीरा लगाया जाता है। वहीं डबल फेफड़ा प्रत्यारोपण के मामले में, स्तन के ऊतकों के नीचे छाती पर एक क्षैतिज चीरा लगाया जाता है। इसके बाद, सर्जन द्वारा क्षतिग्रस्त फेफड़े को हटा दिया जाता है और दाता के फेफड़े से बदल दिया जाता है। प्रत्यारोपण के बाद, रक्त वाहिकाओं और वायुमार्ग को सर्जिकल धागे और सुइयों का उपयोग करके जोड़ा जाता है ताकि ऊतकों को जीवित रखने के लिये प्रत्यारोपित फेफड़े को रक्त प्राप्त हो सके।

एक बार जब प्रत्यारोपित फेफड़े में रक्त पुनः बहने लगता है, तो छोटे आकार की सिलिकॉन नलिकाएँ प्रभावित क्षेत्रों में रखी जाती हैं ताकि छाती से रक्त, हवा और अन्य तरल पदार्थों को बाहर निकाला जा सके। ये नलिकाएँ नए फेफड़ों को फैलाने में भी मदद करती हैं। बाद में, सभी मशीनें मरीज के शरीर से डिस्कनेक्ट की जाती हैं, और चीरों को बंद कर पट्टियों से ढक दिया जाता है।

 

फेफड़े प्रत्यारोपण के जोखिम

फेफड़े का प्रत्यारोपण एक बड़ी सर्जरी होती है, और इस तरह की शल्य प्रक्रिया से जुड़े कुछ जोखिम होते हैं। ऐसी महत्वपूर्ण सर्जरी से पहले, मरीज के लिए सर्जरी में शामिल जोखिम के प्रकारों पर चर्चा करना आवश्यक है। साथ ही, यह भी पता होना चाहिए कि जोखिम से ज्यादा लाभ हैं या नहीं और संभावित जोखिमों को कम करने के लिए आगे परामर्श लेना चाहिए।

• फेफड़े प्रत्यारोपण प्रक्रिया में एक प्रमुख जोखिम अंग अस्वीकृति होती है जो दान किए गए फेफड़े पर प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले के कारण होता है। प्रतिरक्षा प्रणाली प्रत्यारोपित फेफड़े पर इसे बीमारी मानकर हमला करती है जिससे प्रत्यारोपित फेफड़े की विफलता भी हो सकती है।

• एक अन्य जोखिम इम्यूनोसप्रेसेंट्स के प्रभाव के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ना है। इम्यूनोसप्रेसेंट्स वे दवाएँ होती हैं जो फेफड़े प्रत्यारोपण सर्जरी से गुजरने वाले मरीज को दी जाती हैं ताकि मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाया जा सके ताकि वह प्रत्यारोपित किए गए फेफड़े पर हमला न करे। लेकिन कभी-कभी, ऐसी दवाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने के कारण संक्रमण पैदा कर सकती हैं।

• अन्य जोखिम में शामिल हैं:

a. पेट की समस्याएँ

b. किडनी क्षति

c. ऑस्टियोपोरोसिस

d. इम्यूनोसप्रेसेंट्स के कारण होने वाली मलिग्नेंसी

e. रक्त के थक्के बनना

f. कैंसर होने की संभावना

g. मधुमेह

h. नए फेफड़ों से जुड़ी रक्त वाहिकाओं का अवरोध होना

i. पल्मोनरी एडिमा

j. वायुमार्ग अवरोध

इसलिए, संबंधित जोखिमों की संभावना को कम करने के लिए रोगी को सर्जरी से पहले और बाद में डॉक्टर के द्वारा बताए निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। साथ ही, सुनिश्चित करें कि आप अपने डॉक्टर द्वारा निर्धारित कोई भी दवा लेना न चुकें।

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Dr. Arvind Kumar
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