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10 मिथक जो फेफड़ों के कैंसर के बारे में गलत धारणाएं फैलाते हैं

10 मिथक जो फेफड़ों के कैंसर के बारे में गलत धारणाएं फैलाते हैं

फेफड़ों के कैंसर के बारे में समाज में कई भ्रांतियां और गलत धारणाएं फैली हुई हैं। ये मिथक न केवल रोगियों में भ्रम पैदा करते हैं, बल्कि कभी-कभी उनके समय पर निदान और उपचार में भी बाधा बनते हैं। डॉ. अरविंद कुमार, मेदांता गुरुग्राम के अनुसार, इन मिथकों को दूर करना आवश्यक है ताकि लोग इस गंभीर बीमारी के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें।

मिथक

मिथक 1: फेफड़ों का कैंसर पश्चिमी देशों की बीमारी है भारत में यह नहीं होता है

यह धारणा पूरी तरह से गलत है। डॉ. कुमार के अनुसार, भारत में भी फेफड़ों का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। वास्तव में, कई शहरों की कैंसर रजिस्ट्री में पुरुषों में यह नंबर एक कैंसर बन गया है। महिलाओं में भी इसकी दर तेजी से बढ़ रही है। यह स्पष्ट है कि फेफड़ों का कैंसर हमारे देश में भी एक आम कैंसर है।

मिथक 2: फेफड़ों का कैंसर केवल धूम्रपान करने वालों को होता है

यह भी एक गलत धारणा है। डॉ. अरविंद कुमार बताते हैं कि यह 30-40 साल पहले सही हो सकता है। परंतु आज के डेटा के अनुसार, धूम्रपान न करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर उतना ही हो रहा है जितना धूम्रपान करने वालों में। धूम्रपान करने वालों में, यह स्मोकिंग के कारण होता है, जबकि धूम्रपान न करने वालों में, वायु प्रदूषण (बाहरी या घरेलू), सेकेंड हैंड स्मोकिंग, या अन्य कारण हो सकते हैं। भारत में, लंग कैंसर धूम्रपान करने वालों और न करने वालों, दोनों में समान दर से हो रहा है।

मिथक 3: फेफड़ों का कैंसर केवल बुजुर्गों को होता है, यह युवा लोगों में नहीं होता है

डॉ. कुमार के अनुसार, यह धारणा सरासर गलत है। वर्तमान डेटा दर्शाता है कि 30 वर्ष की आयु के युवा लोगों में भी फेफड़ों का कैंसर हो रहा है, और लगभग 10% रोगी 30 वर्ष से कम आयु के हैं। पहले इसकी औसत आयु 50s या 60s थी। परंतु पिछले 20-30 सालों में, फेफड़ों के कैंसर का औसत आयु 1-1.5 दशक कम हो गया है। इसका अर्थ है कि यह पहले की तुलना में कम उम्र में दिखाई दे रहा है। इसलिए, 30 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति में संदिग्ध लक्षण होने पर फेफड़ों के कैंसर के लिए जांच करानी चाहिए।

मिथक 4: फेफड़ों का कैंसर केवल पुरुषों की बीमारी है, महिलाओं में यह नहीं होता है

यह भी एक गलत धारणा है। डॉ. अरविंद कुमार बताते हैं कि वर्तमान डेटा के अनुसार, 40-45% रोगी महिलाएं हैं, और उनमें से कई धूम्रपान नहीं करती हैं और न ही धूम्रपान करने वाले परिवारों से हैं। आज, महिलाओं में फेफड़ों का कैंसर लगभग उतना ही आम है जितना पुरुषों में।

मिथक 5: छाती में दर्द फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम लक्षण है, बाक़ी चीज़े बाद में आती हैं

डॉ. कुमार स्पष्ट करते हैं कि फेफड़ों के कैंसर का सबसे आम लक्षण खांसी है, जिसके बाद खांसी में खून आना (हीमोप्टिसिस) है। छाती में दर्द, सांस फूलना जैसे लक्षण आमतौर पर बीमारी के अधिक उन्नत चरणों में दिखाई देते हैं, जब कैंसर छाती के अन्य अंगों को प्रभावित करने लगता है। लगातार खांसी जो ठीक नहीं होती, विशेष रूप से जब खांसी में खून आए, यह एक गंभीर चिंता का विषय है और इस स्थिति में फेफड़ों के कैंसर के लिए जांच करानी चाहिए।

मिथक 6: टीबी और फेफड़ों का कैंसर बिल्कुल अलग बीमारियां हैं

डॉ. अरविंद कुमार बताते हैं कि टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) और फेफड़ों के कैंसर के लक्षणों में काफी समानता है। दोनों बीमारियों में खांसी और खांसी में खून आना हो सकता है। यही कारण है कि कई रोगियों को शुरू में गलत तरीके से टीबी का निदान किया जाता है, खासकर जब छाती के एक्स-रे में कोई असामान्यता दिखाई देती है। भारत में टीबी अधिक आम होने के कारण, कई महीनों तक टीबी का इलाज करने के बाद, जब कोई सुधार नहीं होता, तभी सीटी स्कैन जैसी अधिक विस्तृत जांच की जाती है, जिससे फेफड़ों के कैंसर का निदान होता है। इसलिए, दोनों बीमारियों के लक्षणों के ओवरलैप को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है ताकि फेफड़ों के कैंसर का निदान छूट न जाए।

मिथक 7: बायोप्सी से फेफड़ों का कैंसर शरीर में बड़ी तेज़ी से फैलता है

डॉ. कुमार इस मिथक को पूरी तरह से गलत बताते हैं। बायोप्सी फेफड़ों के कैंसर के निश्चित निदान के लिए आवश्यक है, चाहे वह एंडोस्कोपिक तरीके से की जाए या सीटी-गाइडेड नीडल बायोप्सी से। बिना बायोप्सी के पुष्टि के, फेफड़ों के कैंसर का इलाज शुरू नहीं किया जा सकता। बायोप्सी से कैंसर कदापि नहीं फैलता है, यह एक मिथक है। इसलिए, किसी भी रोगी को बायोप्सी कराने में संकोच नहीं करना चाहिए और न ही इसमें देरी करनी चाहिए।

मिथक 8: फेफड़ों के कैंसर में सर्जरी की कोई भूमिका नहीं है, बल्कि दवाओं से इलाज किया जाता है

यह धारणा सरासर गलत है। डॉ. अरविंद कुमार के अनुसार, यदि फेफड़ों के कैंसर का निदान प्रारंभिक अवस्था (स्टेज 1 या 2) में हो जाए, तो सर्जरी द्वारा इसका इलाज संभव है और लाखों रोगियों को इससे लाभ होता है। इसलिए, फेफड़ों के कैंसर का जल्द से जल्द निदान करना महत्वपूर्ण है ताकि सर्जरी द्वारा इलाज किया जा सके।

मिथक 9: फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी केवल ओपन सर्जरी से ही हो सकती है और कोई तरीका नहीं है

डॉ. कुमार इस मिथक को भी गलत बताते हैं। आज के समय में, प्रारंभिक अवस्था के लंग कैंसर के अधिकांश मामलों में दूरबीन द्वारा - वीडियो-असिस्टेड थोरैकोस्कोपिक सर्जरी (VATS) या रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी जैसी कम इनवेसिव तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये विधियां ओपन सर्जरी जितनी ही प्रभावी हैं, और इनमें रोगी की रिकवरी तेज होती है, दर्द कम होता है, जटिलताएं कम होती हैं, और रोगी जल्दी अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है।

मिथक 10: फेफड़ों के कैंसर का निदान जीवन का अंत है

डॉ. अरविंद कुमार इस मिथक को भी पूरी तरह से गलत बताते हैं। यदि फेफड़ों के कैंसर का निदान प्रारंभिक अवस्था में हो जाए, तो सर्जरी द्वारा (चाहे वह ओपन सर्जरी हो, की-होल सर्जरी हो, कम इनवेसिव या रोबोटिक सर्जरी), इसका इलाज संभव है। कई रोगी 10-15 वर्षों से स्वस्थ हैं और नियमित फॉलो-अप के लिए आते हैं। हालांकि, यदि कैंसर उन्नत अवस्था में है, तो इलाज का लक्ष्य बीमारी को नियंत्रित करना होता है। इसलिए, फेफड़ों के कैंसर का निदान जीवन का अंत नहीं है, बशर्ते इसका जल्द निदान हो और सही तरीके से इलाज किया जाए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. क्या धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है?

    बिल्कुल, वर्तमान डेटा के अनुसार, धूम्रपान न करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर उतना ही हो रहा है जितना धूम्रपान करने वालों में। धूम्रपान न करने वालों में वायु प्रदूषण, सेकेंड हैंड स्मोकिंग, या अन्य कारण इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

  2. किस उम्र के लोगों को फेफड़ों का कैंसर हो सकता है?

    फेफड़ों का कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है। हालांकि पहले यह मुख्य रूप से बुजुर्गों में देखा जाता था, लेकिन अब 30 वर्ष और उससे कम उम्र के युवाओं में भी यह देखा जा रहा है। पिछले 20 वर्षों में, फेफड़ों के कैंसर का औसत आयु 1-1.5 दशक कम हो गया है।

  3. क्या महिलाओं को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है?

    हां, महिलाओं को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। वर्तमान डेटा दर्शाता है कि लगभग 40-45% फेफड़ों के कैंसर के रोगी महिलाएं हैं, और उनमें से कई धूम्रपान नहीं करती हैं।

  4. फेफड़ों के कैंसर के प्रारंभिक लक्षण क्या हैं?

    फेफड़ों के कैंसर के सबसे आम प्रारंभिक लक्षण हैं लगातार खांसी जो ठीक नहीं होती, और खांसी में खून आना (हीमोप्टिसिस)। छाती में दर्द, सांस फूलना जैसे लक्षण आमतौर पर बीमारी के अधिक उन्नत चरणों में दिखाई देते हैं।

  5. फेफड़ों का कैंसर और टीबी में क्या अंतर है?

    फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लक्षणों में काफी समानता है, जैसे खांसी और खांसी में खून आना। इसी कारण से कई बार प्रारंभिक अवस्था में लंग कैंसर को गलती से टीबी समझ लिया जाता है। सही निदान के लिए उचित जांच महत्वपूर्ण है।

  6. क्या फेफड़ों के कैंसर का इलाज सर्जरी से संभव है?

    हां, यदि फेफड़ों का कैंसर का निदान प्रारंभिक अवस्था में हो जाए, तो सर्जरी द्वारा इसका इलाज संभव है। आज के समय में, कम इनवेसिव तकनीकों जैसे VATS और रोबोटिक सर्जरी का भी उपयोग किया जाता है, जो ओपन सर्जरी जितनी ही प्रभावी हैं।

  7. क्या फेफड़ों के कैंसर का निदान होने के बाद भी जीवन संभव है?

    बिल्कुल, फेफड़ों के कैंसर का निदान जीवन का अंत नहीं है। यदि इसका निदान प्रारंभिक अवस्था में हो जाए और सही तरीके से इलाज किया जाए, तो कई रोगी दीर्घकालिक जीवन जीते हैं। कई रोगी 10-15 वर्षों से स्वस्थ हैं और नियमित फॉलो-अप के लिए आते हैं।

  8. फेफड़ों के कैंसर के संदिग्ध लक्षणों के मामले में क्या करना चाहिए?

    यदि आपको लगातार खांसी है जो ठीक नहीं हो रही है, खासकर अगर खांसी में खून आ रहा है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। प्रारंभिक निदान और उपचार फेफड़ों के कैंसर के प्रबंधन में महत्वपूर्ण है।

Dr. Arvind Kumar
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